अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से सपा उम्मीदवार के रूप में नामांकन कर दिया है. रामपुर में आजम खान और उनके समर्थन इस जिद पर अड़े रहे कि अखिलेश यहां से चुनाव लड़ें. रामपुर में आजम की जिद के आगे नहीं झुकने वाले अखिलेश कन्नौज के कार्यकर्ताओं के दबाव में कैसे आ गए?
कन्नौज के अखाड़े में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव उतरते ही बीजेपी प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने उन्हें चुनावी कुश्ती के लिए ललकार दिया है। सुब्रत पाठक अभी तक कन्नौज में तेज प्रताप यादव को अपने सामने चुनौती ही नहीं समझ रहे थे। अखिलेश यादव के कन्नौज से चुनाव लड़ने पर अब उनका कहना है कि ये मुकाबला भारत और पाकिस्तान वाले मैच जैसा होगा। भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने यहां तक कह दिया है कि अखिलेश यादव की विचारधारा पाकिस्तानी है।
सुब्रत पाठक कहते हैं- ‘मैच अगर एकतरफा होता है तो बिल्कुल मजा नहीं आता है। तेज प्रताप के साथ अगर ये मैच होता तो भारत नेपाल से मैच होता। अब ये भारत और पाकिस्तान वाला मैच होगा। उनकी विचारधारा पाकिस्तानी है। वो एक विशेष समुदाय के माफिया के घर गए। इनको जवाब जनता देगी।’ उन्होंने आगे कहा- ‘सपा के लिए अखिलेश अखिलेश होंगे, हमारे लिए नहीं हैं। हमारे लिए विपक्ष के नेता हैं।’
अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए सुब्रत पाठक ने कहा कि मुलायम सिंह के बेटे के अलावा उनके पास में योग्यता क्या है। अब अखिलेश लड़ने आए हैं तो हमारे कार्यकर्ता की सिर कटी लाश के सिर का हिसाब देंगे। बीजेपी प्रत्याशी सुब्रत का कहना है- ‘अखिलेश परिणाम देख रहे हैं। इसलिए अखिलेश को अपने तेज प्रताप की टिकट काटकर मेरे खिलाफ आना पड़ा। वो जानते हैं कि उनके लिए लड़ाई आसान नहीं है।’ उन्होंने कहा कि ये (सपा) कन्नौज को कहते थे कि हमारा गढ़ है। कन्नौज हमारा घर है, मैं यही रहता हूं, यही लोगों से मिलता हूं और कोई भी कभी भी आता है, मिल लेता है।’
2019 के चुनाव में सुब्रत पाठक ने कन्नौज में समाजवादी पार्टी के किले को ढहा दिया था। अखिलेश यादव 2000 में कन्नौज सीट पर हुए उपचुनाव में पहली बार सांसद चुने गए थे। उसके बाद वो 2004 और 2009 में भी इसी सीट से सांसद रहे। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद लोकसभा से इस्तीफा देने के चलते 2012 में कन्नौज सीट पर हुए उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल निर्विरोध चुनी गई थीं। 2014 के आम चुनाव में भी डिंपल ने इसी सीट से जीत दर्ज की थी। हालांकि साल 2019 के चुनाव में वो पराजित हो गई थीं।
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