Himachal Politics: हिमाचल के सीएम सुक्खू को उन्ही के खिलाफ हुई बगावत का सामना करना पड़ रहा है, जिससे हिमाचल प्रदेश में उनकी मौजूदा कार्यकाल की नैय्या काफी डामाडोल है। हालांकि ये कोई अचानक बढ़ी भगदड़ नही है, बल्की कुछ नए और कुछ पहले से चल रहे विवादों का मिश्रण है।
हिमाचल प्रदेश के नए नवेले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के सुख भरे दिन जाते हुए नज़र आ रहे है, क्योंकि मात्र 14 दिन के नए कार्यकाल में ही सुक्खू को एक के बाद एक कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है, पर जैसे की हमने आपको बताया इस भगदड़ की शुरुआत ऐसे ही नही हुई, एक के बाद एक ऐसी घटनाए होती गई जिन्हे नज़रअंदाज़ करने का खामियाजा मौजूदा सीएम सुक्खू को भुगतना पड़ रहा है।
आइए एक एक कर जानते है उन मुद्दों को-
पूर्व सीएम और दिवंगत वीरभद्र के परिवार की नाराज़गी
हिमाचल में कांग्रेस सरकार में पड़ी इस फूट की शुरूआत तब ही हो गई थी, जब चुनाव जीतने के बाद राज्य में सरकार बनाने की बारी आई। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस असमंजस में थी कि अब अगला सीएम दावेदार किसे बनाया जाए।
हालांकि सीएम पद के दावेदारी के लिए कई नाम सामने आए जिसमें सबसे पहला नाम वीरभद्र की पत्नी प्रतिभा सिंह का था। वह रेस में सबसे आगे चल रही थी। हालांकि परिवारवाद के नारे से बचने के लिए कांग्रेस सरकार ने प्रतिभा सिंह के एक कुशल दावेदार के दावे को नजरअंदाज करते हुए 2013 से 2019 तक हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे 59 वर्षीय सुखविंदर सिंह सुक्कू को सीएम पद के लिए चुना।
जिससे वीरभद्र फैमिली का कांग्रेस के साथ एक तनाव भरा संबंध शुरू होने लगा। छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र का परिवार सीएम पद का जाना सहन नहीं कर सका और तब से लगातार कांग्रेस और वीरभद्र परिवार के बीच में खटास पड़ती ही जा रही है।
इन सब के बीच वीरभद्र के बड़े बेटे विक्रमादित्य सिंह ने भी कई मौकों पर कांग्रेस से अलग राह चुनी। जहां एक और कांग्रेस ने ऐलान किया था कि उनके पार्टी से कोई भी सदस्य राम मंदिर की प्रार्थना प्राण प्रतिष्ठा में शामिल नहीं होगा तो वही विक्रमादित्य ने खुले आम बयान देते हुए कहा कि मैं एक कट्टर हिंदू हूं और यह मेरे लिए एक घर की बात है कि मैं राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा में सम्मिलित होऊ।
मौके पर चौका मरते हुए वीरभद्र के रणनीतिकार को बीजेपी ने बनाया राज्यसभा कैंडिडेट
एक और जहां वीरभद्र की फैमिली और उनके बड़े बेटे विक्रमादित्य सिंह कांग्रेस से दूर होते जा रहे थे तो दूसरी ओर इस आपसी मतभेद का फायदा उठाते हुए भाजपा ने बीच में छलांगा मार कर वीरभद्र के रणनीतिकार रहे हर्ष महाजन को बीजेपी में शामिल कर उन्हें राज्यसभा कैंडिडेट के लिए चयनित कर लिया था गौरतलाप है कि हर्ष महाजन ने साल 2022 में विधानसभा चावन से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था।
सीनियर कांग्रेस आनंद शर्मा की मायूसी ने बढ़ाई पार्टी के अंदर पॉलिटिक्स
एक तरफ जहां वीरभद्र के रणनीतिकार रहे हर्ष महाजन को राज्यसभा का टिकट देकर भाजपा ने अपना गांव खेल दिया था तो दूसरी तरफ राज्यसभा चुनाव की रेस में कांग्रेस ने भी हिमाचल प्रदेश से अभिषेक मनु सिंघवी को उतारा।
पार्टी सिंघवी की जीत को लेकर बेफिक्र थी लेकिन यहां अंदर ही अंदर कुछ और भी पक रहा था। माना जा रहा था कि सीनियर कांग्रेस लीडर आनंद शर्मा भी राज्यसभा जाना चाहते हैं लिहाजा हिमाचल से बतौर राज्यसभा उम्मीदवार उनकी दावेदारी को नैतिक समर्थन पार्टी के अंदर से ही मिल रहा था।
लेकिन पार्टी के मुख्य लीडरों ने आनंद शर्मा का सहयोग नहीं किया क्योंकि वह कभी उस जी-23ग्रुप का हिस्सा रहे थे जिन्होंने पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की बात सबके सामने रखी थी। लिहाजा उनके समर्थन में उठ रही मांगों का पार्टी ने सरेआम खंडन कर दिया था।
कांग्रेस के ही सदस्यों ने क्रॉस वोटिंग कर बुना सिंघवी के खिलाफ जाल
अभिषेक मनु सिंघवी और आनंद शर्मा के बीच हो रहे इस आंतरिक कंपटीशन का नतीजा यह हुआ कि हिमाचल प्रदेश की कुछ शक्तियों ने अभिषेक मनु सिंघवी को बाहरी कहना शुरू कर दिया और उनकी दावेदारी का अंदर ही अंदर विरोध किया।
मौजूदा सीएम सुक्खू इस विरोध की इस लहर को बाप नहीं पाए और गच्चा खा गए चुनाव हारने के बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने खुद कहा कि यह एक तरह से कांग्रेस बनाम कांग्रेस की लड़ाई बन चुकी है क्योंकि जिन 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की उन्होंने डिनर और नाश्ता उन्हीं के साथ किया था फिर भी वह उनकी मंशा नहीं समझ पाए।
आंतरिक मतभेदों को बढ़ावा देती गई सीएम सुक्खू की कमज़ोर और बचकानी राजनीति
68 सदस्यों वाली विधानसभा में 40 सिम लाकर सरकार बनाने वाले सुख को अपने विधायकों से संवाद और तालमेल नहीं बिठा पा रहे थे।
अर्धचालक बात तो यह है कि जिन 6 विधायकों ने बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर अभिषेक मनु सिंघवी का राज्य सभा टिकट कैंसिल करवाया उन्हें स्वर्गीय वीरभद्र के काम का ही माना जा रहा है।
जिन 6 नेताओ ने क्रॉस वोटिंग की उनके नाम
राजेंद्र राणा, सुधीर शर्मा, रवि सिंह ठाकुर, इंद्र दत्त लखनपाल, चैतन्य ठाकुर, देवेंद्र भुट्टो है। मौजूदा सरकार से असंतुष्ट इन विधायको से संवाद ना होने की वजह से ही या खेल हुआ कम सुक्कू यहां भारी चूक गए मंत्री ना बन पाने की वजह से यह नेता शुरू से ही नाराज चल रहे थे।
यह मामला यहां तक ही सीमित नहीं है, सुक्खू उन तीन निर्दलीय विधायकों को भी भरोसे में नहीं ले सके जिन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी के खिलाफ क्रॉस वोटिंग की थी, ये उम्मीदवार शारीरिक रूप से तो कांग्रेस के ओर से दिख रहे हैं लेकिन वह डालने के लिए उनकी वफादारी बीजेपी के हर्ष महाजन के साथ थी जिसका नतीजा यह रहा कि सुक्खू सरकार की नैया आज डामाडोल हो गई है।
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