सावन के महीने में कांवड़ यात्रा की शुरुआत होती है। धार्मिक मान्यता है कि सावन में सच्चे मन से कांवड़ लाने से महादेव प्रसन्न होकर साधक की सभी मुरादें पूरी करते हैं। साथ ही जीवन के संकट दूर होते हैं। क्या आपको पता है कि सबसे पहले कांवड़ कौन लाया था? अगर नहीं पता तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी रोचक कथा के बारे में।
श्रावण मास की शुरुआत होते ही भगवान भोलेनाथ के भक्त बड़ी संख्या में कांवड़ यात्रा लेकर सड़कों पर आपको दिखाई दिए होंगे. सावन का पूरा महीना महादेव को समर्पित होता है, ये वह महीना है जिसमें भगवान शिव के ऊपर बहुत अधिक भार होता है. फिर भी इस दौरान भोलेनाथ को प्रसन्न करना बहुत आसान होता है. उत्तर भारत में पिछले कुछ समय में इसकी लोकप्रियता समाज के उच्च और शिक्षित वर्ग में बढ़ी है. कांवड़ यात्रा को देखकर आपके मन में ये सवाल जरूर आता होगा कि इसकी शुरुआत सबसे पहले किसने की.
धार्मिक ग्रंथ के जानकारों का मानना है कि कावड़ यात्रा की शुरुआत सबसे पहले भगवान परशुराम ने की थी. उन्होंने कांवड़ से गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत के पास बना पुरा महादेव का अभिषेक किया था. भगवान परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से कांवड़ में गंगाजल लेकर आए थे और फिर इस प्राचीन शिवलिंग का अभिषेक किया था. ये परंपरा आज भी चली आ रही है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु गढ़मुक्तेश्वर जो अब ब्रजघाट के नाम से जाना जाता है से गंगाजल लाकर पुरा महादेव का जलाभिषेक करते हैं.
धार्मिक ग्रंथों के कुछ विद्वानों का मत है कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की थी. जब श्रवण कुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा करा रहे थे, तब उनके माता-पिता ने मायापुरी यानी हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा जाहिर की थी. उनकी इच्छा पूर्ति के लिए श्रवण कुमार ने अपने माता पिता को कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार में गंगा स्नान कराया और वापस जाते समय गंगाजल लेकर गए यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है.
कुछ प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत भगवान राम ने की थी. मर्यादा पुरुषोत्तम ने बिहार राज्य के सुल्तानगंज से अपने कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबा धाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था. यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है.
अन्य प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला था तो उसका पान भगवान शिव ने किया था. जिसकी वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया था. इस दौरान सभी देवताओं ने भगवान शिव पर कई पवित्र नदियों का जल अर्पित किया था. साथ ही सभी ने गंगाजल भी चढ़ाया था. यहीं से श्रावण मास में कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है.
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