18वीं लोकसभा के गठन के बाद पहले सत्र में नवनिर्वाचित सदस्यों ने शपथ ग्रहण की थी. अब 22 जुलाई से संसद का बजट सत्र शुरू होने जा रहा है, जिसमें वित्त मंत्री आम बजट पेश करेंगी.
12 अगस्त तक चलने वाले बजट सत्र के दौरान 23 जुलाई को बजट पेश किया जाएगा, जिस पर पूरे देश की नजरें गड़ी हैं. हालांकि, कल्पना कीजिए कि अगर सरकार बजट पेश ही नहीं करे या फिर बजट लोकसभा में पास ही न हो तो क्या होगा?हर साल लोकसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा केंद्रीय बजट या आम बजट पेश किया जाता है, जिसमें केंद्र सरकार की आय-व्यय का लेखा-जोखा होता है. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 112 में प्रावधान किया गया है, जिसके अनुसार वित्त मंत्री बजट पेश करते हैं.
बजट दस्तावेज वास्तव में वार्षिक वित्तीय विवरण होता है, जिसमें खर्च और आय को तीन भागों में दर्शाया जाता है. इनमें संचित निधि (कंसोलिडेटेड फंड), आकस्मिक निधि और लोक लेखा शामिल हैं. अगर सरकार संसद में बजट पेश नहीं करेगी तो उसे संचित निधि से धन निकालने की अनुमति नहीं मिलेगी.
दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 266 में संचित निधि का प्रावधान किया गया है. सरकार को मिलने वाले सभी राजस्व, सरकार द्वारा लिए जाने वाले सभी कर्जे और सरकार की ओर से दिए गए कर्जे की वसूली से प्राप्त राशि ही संचित निधि में बदल जाती हैं. सरकार का सारा खर्च इसी संचित निधि से चलता है, जिसके लिए संसद की मंजूरी जरूरी होती है. संसद की मंजूरी के बिना इस निधि से कोई रकम नहीं निकाली जा सकती है.
इसी तरह से संविधान के आर्टिकल 267 में आकस्मिक निधि का प्रावधान है. यह निधि राष्ट्रपति के कंट्रोल में रहती है. किसी आकस्मिक स्थिति में जरूरत पड़ने पर संसद की मंजूरी के बाद सरकार इस निधि का इस्तेमाल करती है. बाद में जितनी राशि आकस्मिक निधि से निकाली जाती है, उतनी राशि संचित निधि से निकाल कर आकस्मिक निधि में डालकर उसकी भरपाई कर दी जाती है.वहीं, लोक लेखा निधियां सरकार से संबंधित नहीं होती हैं. इसमें भविष्य निधि और लघु बचत आदि निधि शामिल होती है, जिसकी भरपाई जमा करने वाले को करनी होती है. कुछ मामलों में छोड़कर लोक लेखा निधि के भुगतान के लिए संसद की मंजूरी जरूरी नहीं होती.
केंद्र सरकार के लिए संसद में बजट पेश कर पास कराना केवल खर्चों के लिए जरूरी नहीं है. अगर सरकार संसद में बजट पेश नहीं करती है या उसके द्वारा पेश किया गया बजट लोकसभा में पास नहीं होता है तो खुद सरकार पर संकट आ जाता है. केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा में पेश किया गया बजट अगर बहुमत से पारित नहीं होता है तो यह समझ लिया जाता है कि सत्ताधारी पार्टी अल्पमत में है. उसके पास सरकार चलाने के लिए उचित सदस्य संख्या नहीं है.तकनीकी रूप से देखें तो इसका मतलब यह होता है कि केंद्र सरकार ने लोकसभा में विश्वास मत खो दिया है. इसके कारण पूरी सरकार को इस्तीफा देना होता है. यानी जब भी वार्षिक केंद्रीय बजट लोकसभा में पास नहीं होगा तो प्रधानमंत्री अपने मंत्रिपरिषद का इस्तीफा सौंप देंगे.
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ है कि केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया बजट लोकसभा से पास नहीं हुआ हो. वास्तव में किसी भी सरकार ने अल्पमत की स्थिति में आज तक बजट पेश ही नहीं किया. इसमें न पास होने का सवाल ही नहीं उठता है. बजट का लोकसभा से ही पास होना जरूरी होता है, क्योंकि एक तरह से इसी में वित्त विधेयक समाहित होता है. वित्त विधेयक पर राज्यसभा की मंजूरी की जरूरत नहीं होती है.
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