पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ ही उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा की काठ यानी लकड़ियों की मूर्तियां हैं. लकड़ी की मूर्तियों वाले इस अनोखे मंदिर की और भी कई विशेषताएं हैं और खूबियां हैं जो आज भी रहस्यमयी बनी हुई हैं पुरी के जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी कृष्ण की लीलाएं सोचने पर मजबूर कर देती हैं. इस मंदिर के ऊपर कभी पक्षी उड़ते हुए नजर नहीं आते हैं. यहां तक की हवा का रुख भी इस मंदिर के आगे आकर बदल जाता है.
भारत देश आध्यात्मिक मान्यताओं से भरा पूरा है। आज भी ऐसा कहा जाता है की भगवान हमारे समीप है। हमारे देश में ऐसे कई पावन स्थल है जहां भगवान का आज भी वास होता है। जैसा की आपको पता है, भगवान कृष्ण ने अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय मथुरा, द्वारका में बिताया। यहां की गली-गली से उनकी लीलाएं जुड़ी हुई हैं, लेकिन शायद आपको एक जगह नहीं पता हों। मथुरा के अलावा एक जगह ऐसी भी है जहां कृष्ण का दिल आज भी मौजूद है। इस मंदिर में धड़कता है आज भी भगवान कृष्ण का दिल । आइए देखते है एक खास रिपोर्ट
इस मंदिर से जुड़ी कृष्ण लीलाएं सोचने पर मजबूर करती हैं। पुरी के इस जगन्नाथ मंदिर में भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ मौजूद भगवान कृष्ण से जुड़े रहस्य समझ से परे हैं। यहा भगवान से जुड़े अनेक लिलायें होती है, जिसके बारें में शायद हम सोच भी नहीं सकते।आज भी ऐसा कहां जाता है कि जब भगवान कृष्ण ने देह का त्याग किया, तो अंतिम संस्कार के बाद उनका पूरा शरीर तो पंचतत्व में विलीन हो गया, लेकिन दिल सामान्य इंसान की तरह धड़कता रहा। यह आज भी जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति में मौजूद है।
भगवान के इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है। प्रत्येक 12 साल में जब जगन्नाथ जी की मूर्ति बदली जाती है, तो इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में रख दिया जाता है। हालांकि, ऐसा करते समय बहुत सावधानी बरती जाती है। यह असाधारण कार्य बढ़े सूझबूझ के साथ मंदिर के पुजारी करते है। ब्रह्म पदार्थ को नई मूर्ति में रखने के दिन पूरे पुरी शहर में ब्लैक आउट कर दिया जाता है। पूरे शहर में कहीं भी एक दीया भी नहीं जलाया जाता है। इस दौरान मंदिर परिसर को सीआरपीएफ घेर लेती है। यहां तक की मूर्ति बदलते समय पुजारी की आंखों पर भी पट्टी बांध दी जाती है। इस प्रक्रिया को आज तक किसी ने नहीं देखा है। मान्यता है कि यदि इसे कोई देख ले तो उसकी तत्काल मृत्यु हो जाएगी। जानकारी के मुताबिक ब्रह्म पदार्थ को पुरानी से नई मूर्ति में रखने वाले पुजारियों का कहना है कि ब्रह्म पदार्थ हाथों में उछलता से महसूस होता है, जैसे कोई जीवित खरगोश हो।
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