Lakh ki Chudiyan Importance: वो कहते है न शहर वही अच्छा जो अपने शौख न भूले, ये कहावत राजस्थान और उसकी खासियत लाख की चूड़ियों पर एक दम फिट बैठती है। वैसे तो राजस्थान में एक नही बल्कि कई ऐसी व्यवस्थाएं है जो आपको प्राचीन भारत की धरोहर के आज तक जीवित होने का प्रमाण देगा, पर उन सब को अलग कर हम आज आपको लाख की चूड़ियों की खासियत और पुराणों में मौजूद इसके ज़िक्र को बताएंगे। जहां हम इसके इतिहास, पुराणों में इसके तथ्य और इसकी बनने की प्रक्रिया को जानेंगे। इसलिए इस लेख को पूरा पढ़ कर इसे अपने दोस्तो और रिश्तेदारों के साथ ज़रूर से साझा करे।
चलिए फिर बिना किसी देरी के जानते है-
लाख की चूड़ियों का इतिहास (Lakh ki Chudiyan History)
‘लाख’ शब्द की उत्पति संस्कृत के ‘लाक्षा’ शब्द से मानी गई हैं। अथर्ववेद में भी लाख का उल्लेख मिलता है । महाभारत के समय से ही भारत के लोगों को लाख का ज्ञान है। क्योंकि पांडवों का अंत करने के लिए दुर्योधन ने तेज़ी से आग पकड़ने वाला लाख का घर बनवाया था। पर दरअसल लाख एक प्राकृतिक राल है। लाख के जो कीड़े होते हैं, वह बहुत छोटे होते हैं। वे अपने शरीर से लाख देकर हमारी आर्थिक सहायता करते हैं । और इसी लाख से चूड़ियाँ व कंगन बनते हैं।
वैसे माना ये भी जाता है कि लाख की इन चूड़ियों का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता के समय से है। जब उस दौर में मोहन जोदड़ो की खुदाई से नृत्य करती युवती की जो मूर्ति मिली थीं, उसने भी हाथ में चूड़ियाँ पहनी रखी हैं। इसका मतलब, ये चूड़ियां सभ्यता के सबसे पुराने गहनों में से एक हैं।
पुराणों में इनका विवरण
इसी तरह हिंदू पुराण में शिव और पार्वती के साथ भी एक रोचक लोक कथा जुड़ी हुई है जिससे लाख की चूड़ियों के महत्व के बारे में पता चलता है। पुराणों में लाख के विषय में कहा जाता है कि विवाह के समय माता पार्वती को उपहार देने हेतु भगवान भोलेनाथ ने स्वयं के शरीर से मैल निकालकर लाख का कीट बनाया था। और तभी से लाख का निर्माण प्रारंभ हुआ है। लाख से कंगन बनाने हेतु लखारा समाज की उत्पत्ति भी उसी समय हुई।
क्या होती है ‘लाख’?
लाख दरअसल कीटों से उत्पन्न होने वाली राल है। ये कीट पेड़ों पर रह कर उनसे अपना भोजन लेते हैं। इनकी राल एक ऐसा प्राकृतिक उत्पाद है जिसका प्रयोग भोजन, फ़र्नीचर, कॉस्मैटिक और औषधीय उद्योग में बहुत होता है। केरिया लक्का अथवा लाख कीट को लाख के उत्पादन के लिये पाला जाता है। भारत में केरिया लक्का नामक कीट ढ़ाक, बेर और कुसुम जैसे पेड़ों पर पलते हैं।
ऐसे बनती है लाख की चूड़ियां (How Lakh ki Chudiyan Made)
लाख की चूड़ियां बनाने वालो को मनिहार भी कहते है।
सबसे पहले मनिहार लाख को दहकती भट्टी में पिघलाते हैं। उनके सामने एक लकड़ी की चौखट पड़ी रहती हैं। जिस पर लाख के मुलायम होने पर वे उसे सलाख के समान पतला करके चूड़ी का आकार देते हैं। उनके पास बेलननुमा मुंगेरिया रखी रहती है, जो आगे से कुछ पतली और पीछे से मोटी होती है। लाख की चूड़ी का आकार देकर, वे उन्हें मुँगेरियो पर चढ़ाकर गोल और चिकना बनाते हैं। फ़िर एक-एक करके पूरे हाथ की चूड़ियाँ बनाने के पश्चात वे उन पर रंग करते हैं ।
चूड़ियों की सज्जा में छोटे क़ीमती नग और कांच के टुकड़े इस्तेमाल किये जाते हैं। चूड़ी पर महीन साजसज्जा सुई से की जाती है। अन्य हस्तकलाओं की तरह लाख की चूड़ियां बनाने की प्रक्रिया भी काफ़ी थका देने वाली होती है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि आज भी लाख की चूड़ियां हाथों से ही बनाई जा रही हैं।
कहीं भी मशीन का प्रयोग नहीं होता है। वहीं पुराने बढ़िया हुनर के साथ औज़ारों का इस्तेमाल किया जाता है। लाख की चूड़ियां बनाने की कला में पुरुषो और महिलाओं दोनों का भी योगदान होता है। जहां एक तरफ पुरुष छोटी छोटी भट्टियों से लाख को पिघलकर इनकी चूड़ियां बनाते है, तो वही महिलाए इन्ही चूड़ियों को बाजारों में बेचकर राजस्थान की स्थानीय परंपरा को जिंदा रखती है.
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