भाई-बहन का त्योहार रक्षाबंधन पूरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. हर राज्य और वर्ग में अलग-अलग तरीके से इस पर्व को मनाया जाता है और हर जगह इसे लेकर अलग परंपराएं हैं. हालांकि, लंबे वक्त से रक्षाबंधन मनाया जा रहा है. यहां तक कि मुगल भी रक्षाबंधन का पर्व मनाते थे और उस वक्त भी इसका बड़े स्तर पर जश्न मनाया जाता था. क्या आप जानते हैं मुगल शासक अकबर भी हर्षोल्लास से रक्षाबंधन सेलिब्रेट करता था.
मुगल इतिहास में बादशाह हुमायूं को राजपूत रानी कर्णावती की ओर से राखी भेजे जाने का जिक्र है. ऐसा कहा जाता है कि हुमायूं ने राजपूत बहन की राखी की लाज रखी थी. हुमायूं के चित्तौड़गढ़ पहुंचने से पहले ही रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था, लेकिन हुमायूं ने चित्तौड़गढ़ के दुश्मन बहादुर शाह को युद्ध में परास्त कर किले को आजादी दिलाई थी.
इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि हुमायूं के पास आई राजपूत रानी कर्णावती की उस राखी से मुगल साम्राज्य में रक्षाबंधन मनाया जाने लगा था. सिर्फ हुमायूं ही नहीं बल्कि बादशाह अकबर और उसके बाद मुगल सम्राट जहांगीर भी रक्षाबंधन को बड़े ही धूमधाम से मनाते थे और कलाई पर राखी भी बंधवाते थे.
अपने पिता हुमायूं की तरह ही अकबर रक्षाबंधन पर्व मनाता था. इसका पहला कारण तो अकबर का राजपूत घराने से संबंध था और दूसरा कारण यह था कि अकबर के दरबार में कई दरबारी हिंदू थे. प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि किया है कि अबकर ने रक्षाबंधन के दिन दरबार में ही राखी बंधवाने की परंपरा शुरू की थी. अकबर को राखी बांधने के लिए इतने लोग पहुंचते थे कि राखी बंधवाने में पूरा-पूरा दिन गुजर जाया करता था.
अकबर की ओर से दरबार में राखी बंधवाने की परंपरा को जहांगीर ने भी आगे बढ़ाया था. खास बात ये थी कि अकबर सिर्फ दरबारियों के परिवार के लोगों से राखी बंधवाते थे, जबकि जहांगीर ने आम लोगों से भी राखी बंधवाने की परंपरा शुरू की थी. इस दौर में भी अकबर के जमाने की तरह ही शाही दरबार में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता था.
जहांगीर के बाद शाहजहां के जमाने में दरबार में रक्षाबंधन मनाने की परंपरा कम हुई. औरंगजेब के शासनकाल में इस पर पूरी तरह रोक लगा दी गई. 8 अप्रैल 1969 उनहत्तर में औरंगजेब ने एक आदेश जारी कर सभी हिंदू त्योहारों को मनाने पर रोक लगा दी थी. ये आदेश उस वक्त औरंगजेब के शासन वाले सभी 21 सूबों पर लागू हुई थी. औरंगजेब के दरबार से जुड़े साकी मुस्तैद खान ने मआसिर ए आलमगीरी में इस आदेश का जिक्र किया है.
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