किसानों ने अपनी अलग-अलग मांगों को लेकर 13 फरवरी से आंदोलन करने का ऐलान किया था…. इसी दिन पंजाब हरियाणा के लाखों किसान दिल्ली बॉर्डर पर पहुंच गए… इस आंदोलन को ‘दिल्ली चलो’ का नाम दिया गया है और आज इसका चौथा दिन है…
ताजा आंदोलन से 3 साल पहले साल 2020 में भी किसानों ने अपनी कुछ मांगों को लेकर ऐसा ही आंदोलन किया था. उस वक्त भी सड़क पर उतरने वाले ज्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा से ही थे. ऐसे में एक सवाल आपके मन में भी आ रहा होगा… कि इस आंदोलन में पंजाब और हरियाणा के ही ज्यादा किसान क्यों शामिल होते हैं?… आइये जानते हैं…
दरअसल भारत में रोटी चावल और सब्जियां सबसे आम भोजन है. चाहे व्यक्ति कितना भी अमीर क्यों न हो और कितना भी गरीब क्यों न हो. उनके घर नाश्ते से लेकर डिनर तक की प्लेट में रोटी और चावल ही परोसा जाता है… अब पंजाब और हरियाणा ये दो ऐसे राज्य हैं…. जहां सबसे ज्यादा धान की खेती की जाती है. इन दोनों राज्यों के किसानों द्वारा उगाया गया धान ही भारत के अलग अलग हिस्सों के लोग खाते हैं और इन्हीं दोनों राज्यों के किसान भारत की की खाद्य सुरक्षा के लिए अनाज का प्रमुख स्रोत हैं.
इसके अलावा पंजाब और हरियाणा में ज्यादातर लोगों की कमाई का जरिया भी खेती ही है. ऐसे में धान-गेहूं की खेती करने के कारण उनका उत्पाद सरकारी रेट पर बिकते हैं. अब जब साल 2020 में केंद्र सरकार की तरफ से तीन नए कानून लाने की बा त कही गई थी… तो उससे इन दोनों राज्यों को पिछले काफी सालों से बने बनाए सिस्टम पर संकट मंडराता नजर आने लगा…. इसलिए ये किसान एमएसपी को लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं.
सरकारी रिपोर्ट की मानें तो भारत में 6 फीसदी को एमएसपी मिलता है, 94 को नहीं मिलता है… और उन 6 फीसदी किसानों में ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के किसान हैं….. उन्होंने रिपोर्ट में बताया कि पंजाब में उपजाए गए लगभग 97 प्रतिशत धान और लगभग 75-80 फीसदी गेहूं को सरकार द्वारा खरीदा जाता है….. वहीं दूसरी तरफ बिहार में 1 प्रतिशत और यूपी में 7 फीसदी से कम धान और गेहूं की सरकारी खरीद होती है…. राजस्थान की बात करें तो यहां सरकार द्वारा 4 फीसदी के आसपास गेहूं खरीदा जाता है… बतादें कि…. भारत के अलग अलग राज्यों के किसान आज भी खुले बाजार की दया पर आश्रित हैं…. अगर सरकार ने मार्केट का जाल फैलाया होता तो उन्हें भी एमएसपी का फायदा मिलता….
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