ऐंठी मूंछें, ऊंचा कद, साफ कपड़े, हंसता तो खुलकर, दहाड़ता तो बड़े-बड़े कांप जाते, चलने में ठसक नहीं अकड़ होती, निगाहें ऐसी कि घूर दे तो सामने वाला पसीना-पसीना हो जाए. दबंगई करने का शौक, मनमानी करने की जिद जिसने मुख्तार अंसारी को माफिया बना दिया. एक खानदानी घर के लड़के मुख्तार को संगत, परिवेश और बेरोजगारों की फौज ने बड़ा बनाया…
कभी गाजीपुर की जेल में ताजी मछली खाने के लिए तालाब खुदवा चुके… माफिया मुख्तार की बांदा जेल में तबीयत बिगड़ गई… इसके बाद उसे बांदा के रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज ले जाया गया.. जहां उसकी हार्ट अटैक से मौत हो गई…. परिवार ने पहले ही आशंका जता दी थी कि जेल में उसे जहर दिया जा रहा है. तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं लेकिन अब सब कुछ जांच के दायरे में होगा…
गाजीपुर जिले का एक कस्बा है युसुफपुर मुहम्मदाबाद… जहां 1963 में मुख्तार अंसारी का जन्म हुआ था. परिवार नामी था, आजादी की लड़ाई में अपना लंबा योगदान दे चुका था. इसलिए लोग इज्जत बख्शते थे. घर के लोग पढ़े-लिखे और सलीकेदार थे तो छोटी-मोटी समस्याओं के समाधान के लिए लोग मुख्तार के घर पहुंचते थे, मुख्तार अपने घर में सबसे लंबा था. वॉलीबॉल, क्रिकेट, फुटबॉल सब खेलता लेकिन खेलने से ज्यादा जीतने पर नजर रहती. जैसे-जैसे मुख्तार की लंबाई बढ़ती गई, वैसे-वैसे उसमें दबंगपन आता गया. इलाके के लोग बताते हैं कि अगर यह आदमी पढ़ने में इंट्रेस्ट लिया होता तो बड़ा अफसर बनता. लेकिन उसकी मंजिल कहीं और थी.
80 के दशक में जब मुख्तार जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था… तब यूपी से लेकर बिहार तक की राजनीति में अपराध हावी हो रहा था. नेताओं को वोट चाहिए थे और अपराधियों को ठेके. नेता ठेका दिलाते और अपराधी जिंदाबाद के नारे लगाते. गाजीपुर, आजमगढ़ और गोरखपुर तब सटे जिले हुआ करते थे. युसुफपुर मुहम्मदाबाद से 80 किमी दूर है चिल्लूपार, जहां के हरिशंकर तिवारी हुए. मुख्तार जब जवान हो रहा था तब तिवारी बड़े हो गए थे. पहले उन्होंने गोरखपुर में ठाकुरों का वर्चस्व तोड़ा फिर मठ से लोहा ले लिया. मठ को नीचा दिखाने को आतुर अधिकारियों ने हरिशंकर तिवारी का साथ दिया और हरिशंकर का हाता मठ के समानांतर सरकार बन गया. ठेके-पट्टे तिवारी को मिलने लगे. तिवारी ने दूसरे माफिया वीरेंद्र प्रताप शाही को डाउन कर दिया. हरिशंकर तिवारी 1985 में विधायक बन गए. माना जाता है कि अपराध का राजनीतिकरण यहीं से हुआ.
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